Monday, October 25, 2010

स्त्री शक्ति और मुक्ति पर उठते सवाल


     
      आज समाज के ठेकेदारों के मन में स्त्री शक्ति और मुक्ति को लेकर अनेक प्रकार के रहस्य व्याप्त हैं। जैसे कि आज की नारी को इतनी आजादी मिल गई है कि वह काबू में नहीं है, न्यायपालिका स्त्रियों की शुभचिंतक  बनी हुई है, नारियों के लिए विधायिका कुछ ज्यादा ही लचीला व्यवहार अपना रही है। इसी प्रकार के सैकड़ों सवालों ने उन्हें परेशान कर रखा है। आज की नारी ने जिस तरह से अपने आप को इस पितृसत्तात्मक समाज के सामने पेश किया है उससे उन्हें अपनी सत्तात्मक दीवार-हिलती ढुलती नजर आ रही है, जो एक जमाने में चीन की दीवार की तरह अडिग थी।
       यह पुरूषसत्तात्मक समाज माने या न माने लेकिन बिना स्त्री के सहयोग के वे अपने को समाज में स्थापित करने में असमर्थ रहे हैं। इसका वर्णन आज से नहीं बल्कि वैदिक काल से ही मिलता है कि वह अपने अस्तित्व को समाज में पुरूषों से पृथक रहकर भी कायम रखने में सक्षम हैं और यही पुरूष वर्ग की चिन्ता का विषय है। यह सत्य है कि बिना उदारवादी और साम्यमूलक पुरूषों की मदद के यह कार्य सम्भव नहीं था परंतु इसके पीछे एक प्रगतिशील समाज की जरूरत थी जो बिना उस वर्ग विशेष (नारी वर्ग) के सहयोग से सम्भव नहीं दिखती थी।
       आज के समाज का कोई भी क्षेत्र स्त्रियों से अछूता नहीं है चाहे वह प्रशासन हो, खेल हो, कार्पोरेट सेक्टर हो, सेना हो, विज्ञान हो। हर क्षेत्र में नारी शक्ति ने अपना परचम लहराया है। इसी का उदाहरण भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, भारत की प्रथम महिला आई़0पी0एस0 किरण बेदी, बैडमिंटन सनसनी साइना नेहवाल, टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा, चंद्राकोचर, सोनिया गॉधी, अंजू बॉबी जार्ज,ऐश्वर्या राय, कल्पना चावला, प्रथम लोक सभा स्पीकर मीरा कुमार,लता मंगेशकर, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चैहान, डोना गांगुली आदि हजारों मिशालें हमारे सामने हैं।
    नारियॉ सिर्फ अपना योगदान आधुनिक युग में समाज के प्रत्यक्ष उत्थान में नहीं दे रही बल्कि आजादी की लड़ाई में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। गॉधी जी ने नारी शक्ति को पहचाना और आंदोलनों में उनके प्रत्यक्ष भागीदारी को प्राथमिकता प्रदान की। यहॉ तक की क्रांतिकारी आंदोलनों में भी महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। परंतु तब की महिला तथा आधुनिक महिला में अंतर यह है कि आधुनिक महिला अपने अधिकारों तथा अपने मुल्यों के बारे जागरूक है और उसे उन्हें प्राप्त करने की प्रक्रिया का भी ज्ञान है, परंतु पहले वे अधीन एवं दिशाहीन थी।
       लेकिन सवाल यह है कि महिलाओं को अनेक प्रकार के अधिकार दे देने के बाद भी क्या महिलाएं स्वतंत्र एवं सुरक्षित हैं? जेसिका लाल हत्या काण्ड, मधुमिता काण्ड, प्रियदर्शनी मट्टू  हत्याकाण्ड, आरूषि हत्याकाण्ड, निठारी कोठी काण्ड ऐसे अनेक उदाहरण है जो आज भी स्त्रियों की दयनीय स्थिति को प्रकट कर रहे हैं। यह वही समाज है जो एक तरफ स्त्रियों के पक्ष में लिव इन रिलेशनशिपका अधिकार देता है और दूसरी तरफ आनर किलिंगपर अंकुश लगाने में असमर्थ रहा है। भारतीय दण्ड संहिता में धारा 304(ख), 354, 366, 376(क से घ), 497, 498(क), 509 के प्रावधान स्त्रियों के रक्षार्थ किये गये हैं, परंतु यहॉ सवाल यह है कि ये प्रावधान कहॉ तक अपने उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं।
   आज के समाज में इस बात पर विश्वास करना असम्भव है कि शायद ही कोई लड़की हो जिस पर छीटाकशी न की गई हो, शायद ही कोई महिला हो जो किसी पुरूष के अधीन न हो(चाहे जितने बड़े ओहदे पर हो),शायद ही कोई क्षेत्र हो जहॉ रात और दिन महिलाएं स्वछंद होकर विचरण कर सकती होंशायद ही कोई कार्यस्थल हो जहॉ महिलाओं को लेकर राजनीति न होती हो। इन सभी सवालों के होते हुए भी यह पुरूष सत्तात्मक समाज अपने को महिलाओं को बराबरी का हक देने का दिखावा करता है, यह कहॉ तक सही है
       इस स्थिति में अगर समाज की कुछ बुद्धिजीवी  महिलाएं अपने को बराबरी पर लाने के लिए आवाज बुलंद करती है तो पुरूष वर्ग को सुई चुभ जाती है और वह तरह-तरह के बहाने लेकर महिलाओं की आवाज को दबाने की जुगत लगाने लगते हैं। इसी क्रम में कागज पर महिलाओं को थोडे़-बहुत अधिकार देकर उन्हें चुप कराया जाता हैं, जो अधिकार सिर्फ कागज तक ही सीमित रह जाते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हीं के एक साथी (जो पिता, भाई, पति आदि के रूप में होते हैं) के द्वारा अपनी झूठी शान के लिए महिलाओं की आवाज को दबा दी जाएगी।
       मेरा एक स्वतंत्र विचारक के तौर पर या महिलाओं के प्रतिनिधि के तौर पर, जो आप उचित समझे समाज के ठेकेदारों से अनुरोध है कि अपनी इस दोहरी नीति को विराम देते हुए महिलाओं के उत्थान में तथा समाज के उत्थान में वास्तविक भागीदारी दें। एक तरफ तो यही पुरूषासत्तात्मक समाज महिलाओं को अपने फायदें के लिए इस्तेमाल करता है और दूसरी तरफ महिला वर्ग की आलोचना से नहीं चूकता(जैसे विज्ञापनों में महिलाओं को अमर्यादित ढंग से पेश करना और फिर आलोचना करना)। पुरूष वर्ग से इस लेख के माध्यम से अनुरोध है अपनी मुंह में राम, बगल में छूरीकी नीति को बंद कीजिए। साथ ही अगर वास्तविकता में महिलाओं के शोषण को बंद करना चाहते हैं और उन्हें बराबरी पर लाना चाहते हैं तो सबसे पहला काम अपनी संकुचित सोच को महिलाओं के प्रति परिवर्तित कीजिए। तभी आप समाज के उत्थान में वास्तविक भागीदार बन सकते हैं।

 रूबी सिंह

7 comments:

  1. samaj k is sabse bade samsya k nivaran hetu aap ka yah lekh samaj se jaroor yah apeal karta hai ki kya is k liye koi naya kadam uthna chahiye............

    Dhanyawad ..............RUBY JI
    wish u best for the next one.

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  2. स्त्रियों की अनदेखी करने वालों का इस दुनिया से पहला परिचय भी एक स्त्री ने ही कराया था(माँ) ,
    और अंत तक एक स्त्री ही साथ निभाती है (पत्नी ) , देवी माँ को पूजने वाले इस समाज को जीवित देवियों को भी पूजना तो होगा, congrats and thanx , Ruby ji.

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  3. रूबी जी अब महिलाओं को आगे बदने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकी अपने लड़ाई की कमान अब खुद उन्होंने अपने हाथो में ले ली है. और इस लड़ाई में बस आप जैसे लोगों की आवश्यकता है .
    go ahead..............

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  4. हम विकास की बातें करते हैं। दुनिया को दिखाने के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स का भव्य आयोजन करते हैं। लेकिन वैचारिक भव्यता से हम कोसों दूर हैं। अधिकतर भारतीय पुरुषों की नजर में औरत आज भी मात्र एक देह है। उसके व्यक्तित्व, उसके कृतृत्व, मान-समान, बुद्धि, स्वामीभान का कोई मूल्य नहीं? जिस की आधी आबादी का मूल्याकंन इस तरह किया जाए। अंदाज लगा सकते हैं कि उस देश को परिपक्व होने में कितना समय लगेगा।

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  5. Too good to say..........
    .........Great thinking

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  6. Try to avoid self contradictory aspects in the same script Ruby Ji. On one hand you have pointed out the strength & so higher position and other hand weaker position of women in society.

    By the way a nice script is it...........

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  7. kya ye theek hai ki purushon ke udarvaad ka laabh uthakar mahilayen aage badh jaati hain aur fir ghamand karne lagti hain ki hum kisi se kam nahi......

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