Monday, October 4, 2010

चल पड़ा हूँ अब जिस पथ पर


चल पड़ा हूँ अब जिस पथ पर
कहाँ से शुरू हुआ
कहाँ ख़त्म होगा
कोई खबर नहीं
जानने की हसरत भी नहीं 
चल पड़ा हूँ, जिस पथ पर
निशान भी रहेंगे
यादें भी बचेंगी
मिटा सके जो कोई इनको
ऐसा कोई बाकी भी नहीं
चल पड़ा हूँ अब जिस पथ पर
मंजिल मिलने को आएगी
मौसम भी झुक जायेगा
अपने  प्यारे सब अपने होंगे
छूटेगा कोई भी नहीं
चल पड़ा हूँ अब जिस पथ पर
कदम रुकेंगे नहीं.


प्रभात यादव

2 comments:

  1. bas kadam badate rahiye. keep it up

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  2. prabhat ji hum bhi aap sath kadam se kadam milane ki koshish me hain.

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