Sunday, November 28, 2010

पूर्वांचल के लिए अभिशाप बनी इन्सेफलाइटिस




           हमारे देश की अजब बिडम्बना है कि यहां बीमारियों को भी गरीबी और अमीरी में तौला जा रहा है जहां देश में स्वाइन फलू को लेकर संसद के गलियारों से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक हाय तौबा मचाया जाता है वही दुसरी तरफ पूर्वाच्चल के तराई क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष सैकडों बच्चों की जान इंसोफलाइटिस लील जाती है लेकिन इस गवई बीमारी पर सुध लेने वाला कोई नही। 

           उत्तर प्रदेश की इस क्षेत्र की सीमा बिहार और नेपाल से लगती है जो की अपने गन्ना के पैदवार के लिए जाना जाता है लेकिन तराई क्षेत्र होने के नाते जहां गन्ना खेती के लिए ये  उपयुक्त जमीन होती है वही पानी का जमाव होना इस क्षेत्र को संक्रामक बीमारियों का गढ बना देती है। इन संक्रामक बीमारियों में इन्सेफलाइटिस यानी मस्तिष्क ज्वर पिछले तीन दशक के दौरान करीब 50 हजार लोगों की जीवन ज्योती  बुझा चुकी है अगर हम इस वर्ष के आकडे की बात करे तो तकरिबन 3447 बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हुए है जिनमे 497 बच्चे काल के गाल में समां गये है। इस बीमारी के गिरफ्त  में पूर्वाच्चल के तकरिबन 10 जिले आते है जिनमे कुशीनगर देवरिया महराजगंज गोरखपुर सिद्वार्थनगर बस्ती संतकबीरनगर बहराइच प्रमुख है साथ ही नेपाल के तराई क्षेत्र भी इस बीमारी से प्रभावित होते है लगभग 3 करोड आबादी के इस परिक्षेत्र में चिकित्सा सुविधा की जिम्मेदारी खस्ताहाल में पहुच चुके गोरखपुर स्थित बाबा राधवदास मेडिकल कालेज पर है। इस बीमारी का ताडव यह होता है कि मेडिकल कालेज के इंन्सोफलाइटिस वार्ड में तिल रखने तक की जगह नही बचती नए मरीजो को तब जगह मिल पाता है जब किसी पर परिवार का एक चिराग बुझ जाता है। ऐसा नही है कि संसद में बैठे हुकमरानों को इसकी जानकारी नही है दो वर्ष पूर्व इस मौत के ताडव देखने सफेद पोशाक वाले लोग यहां का दौरा कर चुके है और उन्होंने इस बीमारी पर अंकुश लगाने के लिए करोडों रूपये खर्च कर वेक्सीन मगाया लेकिन शायद यह उनके वादे की तरह ही निकला और वेक्सिन लगने के बाद भी इस बीमारी पर अंकुश न लग सका। विलायती बीमारी यानी स्वाइन फ्लू देश में पहुचतें ही संसद गुजने मीडिया दहाड मारने लगी और आलम यह हो गया कि  सरकार फौरन हरकत में आयी और क्या स्वास्थय मंत्री, प्रधानमंत्री तक को इस पर अपनी सक्रियता दिखानी पडी जबकि इस बीमारी का आकडा इन्सोफलाइटिस की तुलना में 10 प्रतिशत भी नही था। गन्ना की खेती कर के  दुसरे के मुंह को मीठा करने वाले पूर्वांचल के लोगो की जिन्दगी का मिठास और नीद इस गवई बीमारी ने उडा रखा है लेकिन जनता के मसीहा बनने वाले नेता अपने एसी कमरे चैन की नीद ले रहे है। शायद सियासत की रोटी सेकने वाले इन सफेद पोश नेताओं को इंतजार है एक नयी राजनीतिक समीकरण बनने का जिससे वे हमारे अंचल के लोगो एहसास दिला सके की देखे तुम सब कितने असहाय हो और इस चढावे में हम चल पडे तेलगांना की तरह पूर्वाच्चल बनाने की राह पर...



अभय कुमार पाण्डेय

Friday, November 12, 2010

अब हवा पर चलकर देखेंगे



राहों पर चलते -चलते थक चले ,
अब हवा पर चलकर देखेंगे ,

खुशियों की खातिर क्या-क्या न किया ,
अब गम संजो कर देखेंगे ,
मंजिल ढूंढते  रहे, पर न मिली , 
न पहचान सके कहाँ है ,
घर द्वार छोड़ा जिसके लिए ,
अब उस मंजिल को छोड़कर देखेंगे ,
ख्वाबों की नीव पर हर रात ,
एक नया महल बनाया अधुरा सा ,
वो महल जब पूरा होगा ,
तब सपना तोड़कर देखेंगें ,   

राहों पर चलते -चलते थक चले ,
अब हवा पर चलकर देखेंगे ,

तकदीर की खींची रेखाएं ,
कुछ बनाती है कुछ बिगाडती है ,
हाथो पर लिखा न समझ  सके ,
तो तकदीर मिटा कर देखेंगे ,
फुर्सत न हुई फुर्सत में भी कभी ,
जीवन इतना व्यस्त रहा ,
मरना भी मुश्किल हुआ तो क्या ,
अब जीवन को फुर्सत से देखेंगे ,
सुबह -दोपहर- शाम -रात बीती ,
दिन - दिन कर जाने क्या -क्या बीता ,
जो बीत गया अतीत था शायद ,
हम नया युग बना कर देखेंगे ,

राहों पर चलते -चलते थक चले ,
अब हवा पर चलकर देखेंगे...

प्रभात