सही कहा गया है कि भारत जैसी विविधता किसी और देश में नहीं मिल सकती मौसम से लेकर भाषा तक। यहाँ तक की मील -मील पर पानी बदलता है लेकिन देश विकास में भी ऐसी विविधता मिलना क्या दर्शाती है? विश्व में भारत को आधुनिक टोक्यो दिखाने के मकसद से राजधानी के कनाट प्लेस एरिया में फुटफाथ पर हजार करोड़ रूपये के लाल संगमरमर पत्थर लगाये जाते है जबकि विकास का विविधता का दूसरा पहलू यह है कि विकास की पटकथा से इतर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में किसान फसल चैपट हो जाने के बाद कर्ज मे डूबकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। अब आप ही बताईए इतनी विविधता कहाँ मिलेगी किसी देश में।
हाल में कैग की आयी ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीते साल खेल महाकुम्भ की तैयारियों के लिए कनाट प्लेस को स्वर्ग बनाये जाने की योजना वर्ष 2005 में बनाई गई थी इसके लिए 76 करोड़ रूपये का अनुमानित बजट बनाया गया था और 2007 आते आते कनाट प्लेस को चमकाने का बजट 9 गुना बढकर 671 करोड़ हो गया। राजधानी का दिल कहे जाने वाले इस जगह के फुटफाथ पर लाल संगमरमरी पत्थर लगाये गये। सीसे सरीखा चमकने वाले इन पत्थरों पर विदेशियों को भारत की छवि दिखाई गईं कि भारत कितने विविधता वाला देश है जहां राजधानी में फुटफाथ पर महंगे पत्थर लगते है वहीं ग्रामिण क्षेत्रो की सड़कों पर इटें तक नहीं बिछाये जाते।
इसे देश की विडम्बना ही कहेंगे कि किसानों की एक बार कर्जमाफी करने पर सरकार कई चुनाव तक अपना ऐहसान इन अन्नदाताओं पर जताती है लेकिन इन्ही किसानो की खून व पसीने से निकले पैसे को सरकार राजधानी को जन्नत बनाने के लिए फुटपाथ पर रंगीन संगमरमर पत्थर लगा दिये जाते है लेकिन तब कोई किसान व आम आदमी सरकार पर कोई एहसान नहीं दिखाता। दिल्ली में आयोजित हो चुके इन खेलों के लिए उस वक्त कई सौ करोड़ खर्च कर खिलाडियों के लिए सफदरजंग मे इंजरी हॉस्पिटल निर्मित किया गया यह बात अलग है कि करोड़ो की मशीने व चिकित्सा उपकरण के सील भी अभी तक नहीं खुले होंगे जबकि दूसरे परिपेक्ष्य मे सरकार द्वारा विविधता का इतना सही संतुलन है कि पूर्वांचल में प्रत्येक वर्ष हजारों बच्चे इन्सेफ्लाईटिस बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा देते है और ऐसे क्षेत्र में पिछले दो दशको में सरकार के पास इतना बजट नहीं जुट पाया कि वह इस बीमारी से दो चार होने वाले ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए एक बेहतर अस्पताल खड़ा कर सके। इसी कामनवेल्थ के लिए राजधानी को दुधिया रौशनी से नहलाने के लिए विदेशों से स्ट्रीट लाइट मंगाइ गई जिसके एक लाइट की कीमत 35 हजार रूपये थी और पूर राजधानी को जगमगाने मे सरकार ने करोडो रूपये पानी की तरह बहाये, यह वही देश है जहां कई गांवो स्ट्रीट लाइट तो छोड़िये एक बल्ब की रोशनी तक नहीं पहुची हैं । विकास किसे पसंन्द नहीं लेकिन अगर इस विकास की शर्तों का खामियाजा सिर्फ आम आदमी व किसान भुगतते है तो यह विकास शोषण का रूप ले लेता है सरकार कब समझेगी कि देश की असली छवि कनाट प्लेस पर जन्नत बनाने से नहीं ग्रामीण क्षेत्रो में विकास की गंगा बहाने से बनेगी । विविधता मौसम में अच्छा लग सकता है भाषा मे लग सकता है लेकिन समाजिक परिवेश में विविधता एक खाई बनाती है और यह दूरिया इंडिया व भारत में जैसी विविधता भी पैदा करती है ।
अभय कुमार पाण्डेय
हाल में कैग की आयी ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीते साल खेल महाकुम्भ की तैयारियों के लिए कनाट प्लेस को स्वर्ग बनाये जाने की योजना वर्ष 2005 में बनाई गई थी इसके लिए 76 करोड़ रूपये का अनुमानित बजट बनाया गया था और 2007 आते आते कनाट प्लेस को चमकाने का बजट 9 गुना बढकर 671 करोड़ हो गया। राजधानी का दिल कहे जाने वाले इस जगह के फुटफाथ पर लाल संगमरमरी पत्थर लगाये गये। सीसे सरीखा चमकने वाले इन पत्थरों पर विदेशियों को भारत की छवि दिखाई गईं कि भारत कितने विविधता वाला देश है जहां राजधानी में फुटफाथ पर महंगे पत्थर लगते है वहीं ग्रामिण क्षेत्रो की सड़कों पर इटें तक नहीं बिछाये जाते।
इसे देश की विडम्बना ही कहेंगे कि किसानों की एक बार कर्जमाफी करने पर सरकार कई चुनाव तक अपना ऐहसान इन अन्नदाताओं पर जताती है लेकिन इन्ही किसानो की खून व पसीने से निकले पैसे को सरकार राजधानी को जन्नत बनाने के लिए फुटपाथ पर रंगीन संगमरमर पत्थर लगा दिये जाते है लेकिन तब कोई किसान व आम आदमी सरकार पर कोई एहसान नहीं दिखाता। दिल्ली में आयोजित हो चुके इन खेलों के लिए उस वक्त कई सौ करोड़ खर्च कर खिलाडियों के लिए सफदरजंग मे इंजरी हॉस्पिटल निर्मित किया गया यह बात अलग है कि करोड़ो की मशीने व चिकित्सा उपकरण के सील भी अभी तक नहीं खुले होंगे जबकि दूसरे परिपेक्ष्य मे सरकार द्वारा विविधता का इतना सही संतुलन है कि पूर्वांचल में प्रत्येक वर्ष हजारों बच्चे इन्सेफ्लाईटिस बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा देते है और ऐसे क्षेत्र में पिछले दो दशको में सरकार के पास इतना बजट नहीं जुट पाया कि वह इस बीमारी से दो चार होने वाले ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए एक बेहतर अस्पताल खड़ा कर सके। इसी कामनवेल्थ के लिए राजधानी को दुधिया रौशनी से नहलाने के लिए विदेशों से स्ट्रीट लाइट मंगाइ गई जिसके एक लाइट की कीमत 35 हजार रूपये थी और पूर राजधानी को जगमगाने मे सरकार ने करोडो रूपये पानी की तरह बहाये, यह वही देश है जहां कई गांवो स्ट्रीट लाइट तो छोड़िये एक बल्ब की रोशनी तक नहीं पहुची हैं । विकास किसे पसंन्द नहीं लेकिन अगर इस विकास की शर्तों का खामियाजा सिर्फ आम आदमी व किसान भुगतते है तो यह विकास शोषण का रूप ले लेता है सरकार कब समझेगी कि देश की असली छवि कनाट प्लेस पर जन्नत बनाने से नहीं ग्रामीण क्षेत्रो में विकास की गंगा बहाने से बनेगी । विविधता मौसम में अच्छा लग सकता है भाषा मे लग सकता है लेकिन समाजिक परिवेश में विविधता एक खाई बनाती है और यह दूरिया इंडिया व भारत में जैसी विविधता भी पैदा करती है ।
अभय कुमार पाण्डेय
bahut sahi baat ki hai bhai ji...
ReplyDeletepar aapne vikas ke naam par commonwealth game ka pics dikhaya hai, lekin gramin parivesh me Rahul Gandhi ki pics ko kis hisaab se lagaya hai... ye chor kis hisaab se desh ki gramin vyavastha ka parichayak ho gaya......
राहुल को कही से गांव का परिचाायक बताने के मकसद से यह फोटो नही लगाया गया है बल्कि इसके माध्यम से दिखाया गया है कि गांव की इन्ही सडको से गुजरने के बाबजूद राहुल को गांव के विकास की कोइ्र फ्रिक नही
ReplyDeletegood one Abhay ,
ReplyDeleteसही कहा अभय जी और ये विविधता तब तक बनी रहेगी जब तक लोग पैसे के पीछे अपनी नैतिकता त्याग कर भागते रहेंगे.
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